उम्र के हर कगार पर सपने सी आए हैं
कुछ खो चले
कुछ पर पाओं रख उड आएँ हैं
कहीं ठोकरे खाई,कहीं मारी
कभी बचपना तो कभी मासूमियत खो आएँ हैं
कहीं प्यार करना सीखा ,
कहीं उन्हें खोता खुद को रोता हुआ देखा
हमेशा के लिए कुछ नहीं होता
ज़िंदगी से ये सबक सीखते हुए आएँ हैं
कहीं दिल खोल कर रख दिया
कहीं बेजुबान रह गए
ज़िंदगी के हर रंग को
लो जी आए हैं
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